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Haveli Sangeet and Ashtchhap Poet of Pushtimarg-पुष्टिमार्ग का हवेली संगीत और अष्टछाप कवि

July 29, 2018
संगीत मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग हो गया है। मनुष्य, प्रकृति, पशु-पक्षी सभी मिलकर एकतान संगीत की सृष्टि करते हैं। ऐसा मालूम होता है कि समस्त ब्रह्माण्ड ही एक सुन्दर संगीत की रचना कर रहा है। वैसे तो जो भी ऐसा गाया या बजाया जाए जो कर्णप्रिय हो संगीत ही होगा किन्तु कुछ निश्चित नियमों में बँधे हुए संगीत को शास्त्रीय संगीत कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत अथवा सरल संगीत आदि जो कुछ आज हमें सुनने को मिल रहा है उसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में परम्परागत शास्त्रों के विचारों के साथ-साथ 15वीं, 16वीं, 17वीं शताब्दी के मध्यकालीन भक्ति संगीत से अवश्य प्रभावित है।
मध्यकालीन संगीत में अष्टछाप या हवेली संगीत की स्थापना, पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक आचार्य श्री वल्लभाचार्य के पुत्र आचार्य गोस्वामी श्री विट्ठलनाथजी ने श्रीनाथ जी की सेवा करने एवं  पुष्टिमार्ग के प्रचार-प्रसार करने के लिए की थी। 'अष्टछाप' कृष्ण काव्य धारा के आठ कवियों के समूह को कहते हैं, जिनका मूल सम्बन्ध आचार्य वल्लभ द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय से है। जिन आठ कवियों को अष्टछाप कहा जाता है, वे हैं -

1. कुम्भनदास,           2. सूरदास,          3. परमानन्ददास,            4.   कृष्णदास, 

5. गोविन्दस्वामी,       6. नन्ददास,       7. छीतस्वामी और            8.  चतुर्भुजदास। 

इनमें  उपर्युक्त चार  कवि  संगीतज्ञ वल्लभाचार्य जी तथा शेष चार  गोस्वामी विट्ठलनाथ  जी  के  शिष्य  माने  गये  हैं। उपर्युक्त सभी अष्टछाप कवियों को विट्ठलनाथ जी ने श्रीनाथ मंदिर की अष्टयाम सेवा के लिये नियुक्त किया था।श्रीनाथजी के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित ये सभी भक्त आशुकवि होने के साथ-साथ संगीत के मर्मज्ञ भी थे।
द्वारिकेश जी रचित श्री गोवर्धनदास जी की प्राकट्यवार्ता में उल्लेखित छप्पय में अष्टछाप के संदर्भ में व्याख्या मिलती है-
‘सूरदास सो तो कृष्ण तोक परमानन्द जानो।
कृष्णदास सो ऋषभ, छीत स्वामी सुबल बखानो।
अर्जुन कुंभनदास चतुर्भुजदास विशाला।
विष्णुदास सो भोजस्वामी गोविन्द श्री माला।
अष्टछाप आठो सखा श्री द्वारकेश परमान।
जिनके कृत गुणगान करि निज जन होत सुजान।’


 

 वल्लभाचार्य ने शंकर के अद्वैतवाद एवं मायावाद का खण्डन करते हुए भगवान कृष्ण के सगुण रूप की स्थापना की और उनकी भावनापूर्ण भक्ति के लिए भगवान श्रीनाथ जी का मन्दिर बनवाकर पुष्टिमार्गीय भक्ति को स्थापित किया। वस्तुतः विट्ठलनाथ जी ने ही भगवान श्रीनाथजी की अष्टयाम सेवा  एवं ‘अष्ट श्रृंगार’ की परम्परा शुरु की थीा।  इस अष्टयाम सेवा को आठ भागों में विभक्त किया जाता है -

(1) मंगला               (2) शृंगार              (3) ग्वाल                                  (4) राजभोग 

(5) उत्थापन            (6) भोग                (7) सन्ध्या आरती और             (8) शयन। 

अष्टयाम सेवा प्रभु श्रीनाथजी की नित्य की जाने वाली सेवा है। अष्टछाप के इन आठों कवि संगीतज्ञों का कार्य उन अष्टयाम के आठों समयों में उपस्थित रहकर कृष्ण भक्ति के गीत प्रस्तुत करना था। अष्टछाप के संगीतज्ञ कवियों ने ‘अष्ट श्रृंगार’ अथवा ‘अष्टयाम सेवा’ के माध्यम से विभिन्न पदों की रचना की, जो अनेक रागों और तालों में गाए जाते हैं। अष्टयाम सेवा भगवान श्रीनाथ जी की सेवा का एक दैनिक क्रम है जो प्रातःकाल से ही प्रारंभ होकर संध्या तक चलता है। श्रीनाथजी के मंदिर में विभिन्न अवसरों, त्यौहारों एवं तिथियों पर प्रभु श्रीनाथजी की विशेष सेवा एवं श्रृंगार से युक्त विभिन्न उत्सवों का आयोजन किया जाता है। वर्ष भर में विशेष दिवसों पर इन उत्सवों का आयोजन होता है, इसीलिए इन्हें वर्षोत्सव सेवा कहते हैं। इसमें षट्-ऋतुओं के उत्सव, अवतारों की जयन्तियाँ, अलग-अलग त्यौहार, तिथियाँ तथा पुष्टिमार्ग के आचार्यों एवं उनके वंशजों के जन्मोत्सव सम्मिलित होते हैं। पुष्टिमार्गीय पूजा पद्धति में इस वर्षोत्सव सेवा को विशेष महत्त्व दिया जाता है। वर्षोत्सव सेवा के अन्तर्गत दैनिक सेवा (नित्य सेवा) के अतिरिक्त विशेष रूप से श्रृंगार, राग तथा भोगों की व्यवस्था होती है।
पुष्टिमार्ग में प्रभु श्रीनाथजी की सेवा श्रृंगार, भोग और राग के माध्यम से की जाती है। पुष्टिप्रभु संगीत की स्वर लहरियों में जागते हैं। उन्ही स्वर लहरियों के साथ श्रृंगार धारण करते हैं और भोग आरोगते हैं। वे संगीत के स्वरों में ही गायों को टेरते और व्रजांगनाओं को आमंत्रित करते हैं तथा रात्रि में मधुर संगीत का आनन्द लेते ही शयन करते हैं। पुष्टिमार्ग में ऋतुओं में क्रम से वस्त्रों एवं अलंकारों का चयन किया जाता है तथा भोग में किस दिन किस झाँकी में कौन सा भोग कितनी मात्रा में होना चाहिए, इसका भी एक निश्चित विधान है।  इसी प्रकार पुष्टिमार्गीय मंदिरों में ऋतु एवं काल के अनुरूप राग-रागिनियों का निर्धारण किया जाता है तथा तदनुरूप भगवद्भक्तिपूर्ण पदों का गायन (कीर्तन) किया जाता है। इस कीर्तन में परम्परागत वाद्य यंत्रों के द्वारा संगत होती है।
कीर्तनिया या कीर्तनकार- पुष्टिमार्ग ने संगीत के क्षेत्र में सैकडो संगीतकार प्रदान किए है। श्रीनाथजी हवेली में की जाने वाली गायन-क्रिया को कीर्तन कहा जाता है और कीर्तनकार गायक को कीर्तनिया कहा जाता है। इस प्रकार पुष्टिमार्गीय पूजा परंपरा में कीर्तन का विशेष महत्त्व है। यदि परम्परा में कीर्तनियाँ न हो तो सेवा पूरी नहीं समझी जाती है। पुष्टिमार्ग में अष्टछाप के पदों से युक्त कीर्तन अन्य मदिरों में होने वाले मंत्रोच्चारण के समान महत्व रखते हैं। अन्य सम्प्रदायों के मन्दिरों में सेवा अथवा पूजा का क्रम मन्त्रोच्चारण से पूर्ण होता है, लेकिन पुष्टिमार्ग में मन्त्रोच्चारण के स्थान पर कीर्तन ही किया जाता है। इस कीर्तन में कीर्तनिये अष्टछाप कवियों द्वारा रचित पद गाते हैं। अष्टछाप संगीत की गायन की विधि शुद्ध शास्त्रीयता पर आधारित होती है। इसमें रागों की सुनियोजित योजना होती है। इसमें नित्य-सेवा क्रम से कीर्तन की अपनी अलग प्रणालिकाएं हैं। जैसे- नित्य क्रम में राग भैरव, देवगंधार आदि से प्रारम्भ करके बिलावल, टोड़ी व आसावरी आदि (सर्दियों में) रागों से गुजरते हुए संध्या को पूर्वी व कल्याणादि तक पहुँचते हैं तथा उसके पश्चात् अन्य रागों के व्यवहार के साथ-साथ अन्त में शयन कराने के लिए आवश्यक रूप से बिहाग राग का प्रयोग होता है।
वर्तमान शास्त्रीय संगीत में तीन ताल का प्रयोग सर्वाधिक होता है। उसी प्रकार ब्रज अथवा मथुरा के अष्टछाप संगीत में धमार ताल का सर्वाधिक प्रयुक्त होता है, जबकि नाथद्वारा में आडाचारताल का प्रयोग अधिक होता है। वहाँ पर थोड़ा द्रुत लय में इस ताल का प्रयोग होता है। गायन की ध्रुपद धमार शैली और रास-नृत्य शैली ने अष्टछाप संगीत को अमरता प्रदान किया।

चतुर्भुजदास कृत ‘षट् ऋतु वार्ता’ में 36 वाद्यों का उल्लेख मिलता है, जिनका पुष्टिमार्गीय अथवा अष्टछाप के मन्दिरों में प्रयोग होता था। उनमें से तानपूरा (तंबूरा), वीणा, पिनाक, मृदंग अथवा पखावज, सारंगी, रबाब, जंत्र, बाँसुरी, मुरज, दुंदुभि, भेरि, शहनाई, ढोल, खंजरी, झाँझ, मंजीरा, महुवरि, तुरही, शृंगी, शंख,  मुख्य वाद्य यन्त्र हैं।
अष्टछाप संगीत को क्यों कहते हैं हवेली संगीत- 
मथुरा, नाथद्वारा, मथुरा के निकट स्थित गोवर्धन पर्वत, कांकरोली (द्वारकाधीश जी), कामा, कोटा आदि पुष्टिमार्गीय भक्ति साधना के प्रमुख स्थल हैं। मुगल बादशाह औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता की मानसिकता के कारण संवत् 1720 वि0 में श्रीनाथजी के स्वरूप को राजस्थान के नाथद्वारा में ले जाया गया था। मन्दिरों और मूर्तियों को बचाने के लिए मूर्तियों को मन्दिरों से हटाकर हवेलियों में सुरक्षित रखा गया तथा वहाँ पर उसी विधान से श्रीनाथजी की सेवा की जाने लगी। कालान्तर में इन हवेलियों में विग्रह स्थापना और अष्टयाम सेवा के होने के कारण अष्टछाप संगीत को हवेली संगीत भी कहा जाने लगा। अष्टछाप कवि संगीतज्ञों ने भगवान कृष्ण के लोकरंजक स्वरूप व माधुर्य से पूर्ण लीलाओं का चित्रण किया है। वात्सल्य और श्रृंगार का ऐसा अद्भुत वर्णन किसी और साहित्य में नहीं प्राप्त होता है। प्रेम की स्वाभाविकता और प्रेम की विशदता के दर्शन इस भक्ति काव्य में प्राप्त होते हैं। इनमें की गई कृष्ण-लीलाओं का वर्णन भक्तों को रस व आनन्द प्रदान करता है। मध्यकाल के जब महिलाओं का घर से निकलना अवरुद्ध था, तब इन कृष्ण भक्त अष्टछाप कवि संगीतज्ञों ने अपने काव्य व संगीत के माध्यम से नारी मुक्ति की प्रस्तावना लिख दी थी। कृष्ण काव्य धारा के इन कवि-संगीतज्ञों ने गोपियों के माध्यम से नारियों को प्रतीकात्मक अर्थ में मुक्ति प्रदान की थी।
अष्टछाप काव्य गहन अनुभूतियों का काव्य है। इन कवियों की रचनाएँ प्रायः मुक्तक में हैं। हवेली संगीत की ब्रज-मधुरता विलक्षण है। ब्रज भाषा में रचित इन रचनाओं में अत्यंत माधुर्यपूर्ण संगीतमय काव्य है। इसी का परिणाम है कि बाद में आने वाले रीतिकाल में ब्रजभाषा एकमात्र काव्य भाषा बन गई थी। दोहा, कवित्त, सवैया आदि के प्रयोग द्वारा इन भक्त कवियों ने लयात्मकता और संगीतात्मकता के प्रति गहरा जुड़ाव बनाए रखा। इसी कारण इन कवि संगीतज्ञों ने प्रायः सभी पद किसी न किसी राग को आधार बनाकर रचे हैं। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों तथा बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से अष्टछाप कवि संगीतज्ञों ने काव्य और संगीत को गहनता प्रदान की है।
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Kathodi Tribe of Rajasthan - राजस्थान की कथौड़ी जनजाति

July 23, 2018

Kathodi Tribe of Rajasthan - राजस्थान की कथौड़ी जनजाति

  • राज्य की कुल कथौड़ी आबादी की लगभग 52 प्रतिशत कथौड़ी लोग उदयपुर जिले की कोटडा, झाडोल, एव सराडा, पंचायत समिति में बसे हुए है। शेष मुख्यतः डूंगरपुर, बारां एवं झालावाड़ में बसे है।
  • ये महाराष्ट्र के मूल निवासी है। खैर के पेड़ से कत्था बनाने में दक्ष होने के कारण वर्षो पूर्व उदयपुर के कत्था व्यवसायियों ने इन्हें यहाँ लाकर बसाया। कत्था तैयार करने में दक्ष होने के कारण ये कथौड़ी कहलाए गए। राजस्थान में 2011 की जनगणना के अनुसार कथौड़ी जनजाति की कुल आबादी मात्र 4833 है। ये Kathodi,  Katkari,   Dhor Kathodi,   Dhor Katkari,   Son Kathodi,   Son Katkari के अलग-अलग उपजातियों में पाए जाते हैं।
  • वर्तमान में वृक्षों की अंधाधुध कटाई व पर्यावरण की दृष्टि से राज्य सरकार द्वारा इस कार्य को प्रति बंधित घोषित कर दिए जाने कथौड़ी लोगों की आर्थिक स्थिति बडी शोचनीय एवं बदतर हो गयी है। आज य जनजाति समुदाय जगंल से लघु वन उपज जैसे बांस, महुआ, शहद, सफेद मूसली, डोलमा, गोंद, कोयला एकत्र कर और चोरी-छुपे लकड़ियाँ काटकर बेचने तक सीमित हो गया है।
  • राज्य की अन्य सभी जनजातियों की तुलना में इस जनजाति के लोगों का शैक्षिक एवं आर्थिक जीवन स्तर अत्यधिक निम्न है।

कथौड़ी जनजाति की प्रमुख विशेषताएं

  • कथौड़ी जंगलों व पहाड़ों में रहने वाली ऐसी जनजाति है, जो स्वभावतः अस्थाई एवं घुमन्तु जीवन जीती रही है।
  • खेर के जंगलों से कत्था तैयार करने के अलावा मछली पकड़ना, कृषि कार्य करना यह जनजाति अपना गुजर बसर करती है।
  • कथौड़ी लोग घास - पूस, पत्तों एवं बांसों से बने झोपडों, जिन्हे खोलरा कहते है, में रहते है।
  • इनके परिवार आत्म केन्द्रित होते है। व्यक्ति शादी होते ही अपने मूल परिवार से अलग हो जाता है। नाता करना, विवाह विच्छेद एवं विधवा विवाह प्रचलित है।
  • कथौड़ी मांसाहारी होते है। दैनिक खानपान में मक्का, ज्वार आदि की रोटी प्याज आदि के साथ खाते है। चावल उनको प्रिय है।  पेय पदार्थो में दूध का प्रयोग बिल्कुल नहीं होता है।
  • ये शराब अधिक पीते हैं।
  • स्त्रियां मराठी अंदाज में साड़ी पहनती है, जिसे फड़का कहते है। इनमें गहने पहनने का कोई रिवाज नहीं है। इनमें शरीर पर गोदने का महत्व है।
  • कथौड़ी प्रकृति पर आश्रित जनजाति हैं। वे पुनर्जन्म को पूरी तरह मानते है।
  • कथौड़ी लोगों के प्रमुख परम्परागत देवता डूंगर देव, वाद्य देव, गाम देव, भारी माता, कन्सारी देवी आदि है। कथौड़ी देवताओं से ज्यादा देवी भक्ति में विश्वास रखते है।
  • कथौड़ी समाज में मुखिया को नायक कहते है।
  • इस जनजाति में मावलिया नृत्य एवं होली नृत्य प्रमुख है।
  • मावलिया नृत्य - इस नृत्य नवरात्रों में पुरूषों द्वारा किया जाता है। इसमें 10-12 पुरूष ढोलक, टापरा एवं बांसली की ताल पर गोल-गोल घूमते हुए नाचते हैं।
  • होली नृत्य - इसमें कथौडी स्त्रियां होली के अवसर पर एक दूसरे का हाथ पकडकर नृत्य करती है। नृत्य के दौरान पिरामिड भी बनाती है। पुरूष उनकी संगत में ढोलक, घोरिया, बांसली बजाते है।
  • कथौड़ी जनजाति के लोक वाद्य : इनके वाद्य यंत्रों में गोरिड़िया एवं थालीसर मुख्य है।
  • तारणी : लोकी के एक सिरे पर छेद कर बनाया जाने वाला वाद्य जो महाराष्ट्र के तारपा लोकवाद्य के समान है।
  • घोरिया या खोखरा : बांस से बना वाद्य यंत्र।
  • पावरी : तीन फीट लंबा बांस का बना वाद्य यंत्र जो ऊर्ध्व बाँसुरी जैसा वाद्ययंत्र है। इसे मृत्यु के समय बजाया जाता है।
  • टापरा : बांस से बना लगभग 2 फीट लम्बा वाद्य यंत्र।
  • थालीसर : पीतल की थाली के समान बनाया गया वाद्य यंत्र। इसे देवी देवताओं की स्तुति के समय या मृतक का अंतिम संस्कार के बाद बजाते हैं।
  • इनमें विवाह में प्रथा व विधवा पुनर्विवाह प्रचलित है। मृत्युभोज प्रथा भी प्रचलित है।
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    राजस्थान की सूक्ष्म एवं गर्म जलवायु में खजूर की खेती

    July 18, 2018

    केन्द्र सरकार एवं राजस्थान सरकार के प्रयासों और वैज्ञानिकों एवं कृषि विशेषज्ञों की मदद से राजस्थान के किसान पारंपरिक खेती के तरीकों के साथ-साथ आधुनिक कृषि के युग में प्रवेश कर रहे है। फलस्वरूप राजस्थान में जैतून, जोजोबा (होहोबा), खजूर जैसी वाणिज्यिक फसलें भी होने लगी है।

    राज्य की सूक्ष्म एवं गर्म जलवायु खजूर की खेती के लिए वरदान साबित हो रही है। राजस्थान का उद्यानिकी विभाग उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के शुष्क रेगिस्तानी क्षेत्रों में खजूर की खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे रहा है। खजूर एक ऐसा पेड़ है जो विभिन्न प्रकार की जलवायु में अच्छी तरह से पनपता है। हालांकि, खजूर के फल को पूरी तरह से पकने और परिपक्व होने के दौरान लम्बे समय तक शुष्क गर्मी की आवश्यकता होती है। लम्बे समय तक बादल छाए रहने और हल्की बूंदाबादी इसकी फसल को अधिक नुकसान पहुंचाती है। 

    इसके फूल आने और फल के पकने के मध्य की समयावधि का औसत तापमान कम से कम एक महीने के लिए 21 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस अथवा इससे अधिक होना चाहिए। फल की सफलतापूर्वक परिपक्वता के लिए लगभग 3000 हीट यूनिटस की आवश्यक होती हैं। राजस्थान का मौसम इसके लिए उपयुक्त हैं।




    राजस्थान सरकार ने वर्ष 2007-2008 में राज्य में खजूर की खेती की परियोजना शुरू करने की पहल की थी। जैसलमेर के सरकारी खेतों और बीकानेर में मैकेनाइज्ड कृषि फार्म के कुल 135 हेक्टेयर क्षेत्रों पर खजूर की खेती शुरू की गई। इसमें से 97 हेक्टेयर क्षेत्र जैसलमेर में और 38 हेक्टेयर क्षेत्र बीकानेर में था। राज्य में वर्ष 2008-2009 में किसानों द्वारा खजूर की खेती शुरू की गई। खजूर की खेती के लिए राज्य के 12 जिलों जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, नागौर, पाली, जालौर, झुंझुनूं, सिरोही और चुरू का चयन किया गया। 2007-2008 में सरकारी खेतों के लिए संयुक्त अरब अमीरात से 21,294 टिशू कल्चर से उगाये गये पौधे आयात किए गए। 2008 से 2011 की अवधि में किसानों की भूमि पर खेती हेतु ऐसे ही लगभग 1,32,000 पौधे तीन चरणों में संयुक्त अरब अमीरात और ब्रिटेन से आयात किए गए थे।

    वर्तमान में राज्य के किसानों द्वारा अब तक कुल 813 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र पर खजूर की खेती की जा रही है। राज्य द्वारा वर्ष 2016-17 तक खजूर की खेती के लिए 150 हेक्टेयर से और अधिक भूमि को इसमें शामिल करने का लक्ष्य प्रस्तावित है। भारत-इजरायल के सहयोग से सागरा-भोजका फार्म पर खजूर पर अनुसंधान कार्य चल रहा है। डेट या डेट पाम (खजूर) के रूप में जाना जाने वाला फीनिक्स डाक्ट्यलीफेरा सामान्यतः पाम फेमिली के फूल वाले पौधे की प्रजातियां हैं। खाने योग्य मीठे फलों के कारण अरेकेसिये की खेती की जाती है।

    खजूर की बेहतरीन किस्म उगाने के लिए राज्य सरकार द्वारा 3 मार्च 2009 को जोधपुर में अतुल लिमिटेड के साथ मिलकर एक टिशू कल्चर प्रयोगशाला की शुरूआत की गई। अप्रैल, 2012 से इस प्रयोगशाला ने टिशू कल्चर खजूर की खेती करना शुरू किया गया। राज्य सरकार द्वारा इस प्रकार के करीब 25,000 पौधों के उगने की उम्मीद की जा रही है। वर्तमान में राजस्थान में खजूर की सात किस्मों यथा बारही, खुनेजी, खालास, मेडजूल, खाद्रावी, जामली एवं सगई की खेती की जा रही है। राज्य सरकार द्वारा टिशू कल्चर तकनीक पर खजूर की खेती करने वाले किसानों को वर्ष 2014-2015 में 90 प्रतिशत अनुदान दिया गया। इसी प्रकार 2015-2016 से किसानों को टिशू कल्चर के आधार पर 75 प्रतिशत अनुदान अथवा अधिकतम प्रति हेक्टेयर 3,12,450 रूपए की राशि दी जा रही है।
     


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    Bovine animals in Rajasthan राजस्थान में गौ-वंश - (राजस्थान में पशुधन)

    July 15, 2018

    राजस्थान में गौ-वंश

    राजस्थान के पशुपालन के क्षेत्र में गाय का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। राजस्थान की अर्थव्यवस्था में गौधन का महत्वपूर्ण स्थान है।  भारत की समस्त गौ वंश का लगभग 8 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है।
    गौ वंश संख्या में भारत में प्रथम स्थान उत्तरप्रदेश का है। राजस्थान राज्य का भारत में गौ-वंश संख्या में सातवाँ स्थान है। राज्य में कुल पशु-सम्पदा में गौ-वंश प्रतिशत 22.8 % है। संख्या में बकरी के पश्चात् गौवंश का स्थान दूसरा है। राजस्थान में अधिकतम गौवंश उदयपुर जिले में हैं जबकि न्यूनतम धौलपुर में हैं। गौशाला विकास कार्यक्रम की राज्य में शीर्ष संस्था राजस्थान गौशाला पिजंरापोल संघ, जयपुर है। बस्सी (जयपुर) में गौवंश संवर्धन फार्म स्थापित किया गया है। राज्य गौ सेवा आयोग, जयपुर की स्थापना 23 मार्च 1951 को की गई थी। गौ-संवर्धन के लिए दौसा व कोड़मदेसर (बीकानेर) में गौ सदन स्थापित किए गए हैं।
    • राज्य में पशुगणना 2012 के अनुसार कुल गौधन संख्या 1,33,24,462 या लगभग 133.2 लाख (13.32 मिलियन) है। 
    • अन्तर पशुगणना अवधि (2007-2012) के दौरान गौधन की संख्या में 9.94% की वृद्धि हुई है।  
    • पशुगणना 2012 में कुल विदेशी / संकर गौधन संख्या 2003 की पशुगणना की संख्या 4.6 लाख (0.46 million) से बढ़कर 17.3 लाख (1.73 million) हो गई है। 
    • पशुगणना 2012 में कुल देशी गौधन संख्या 2003 की पशुगणना की संख्या 103.9 लाख (10.39 million) से बढ़कर 115.8 लाख (11.58 million) हो गई है। 
    • विदेशी / संकर और देशी गौधन की संख्या में प्रतिशत परिवर्तन ''अन्तर जनगणना अवधि'' (2007-2012) के दौरान क्रमश: 112.72% और 2.53% है। 
    मादा गौधन-
    • पशुगणना 2012 के अनुसार राज्य में मादा गौधन की कुल संख्या 100.6 लाख (10.06 million) है।
    • पशुगणना 2003 की मादा गौधन की संख्या 72.3 लाख की तुलना में यह बढ़ कर पशुगणना 2012 में 100.6 लाख हो गई है। पिछली पशुगणना की तुलना में यह वृद्धि 18.62% की हुई है।

    राजस्थान में जिलावार गौधन की संख्या- 

    2012 की पशुगणना में गौधन की संख्या में प्रथम तीन स्थान के जिले निम्नांकित हैं-  
    प्रथम           -         उदयपुर      कुल गौवंश में 7.30% का योगदान (कुल संख्या 9,72,182) 
    द्वितीय      -         बीकानेर      कुल गौवंश में 6.80% का योगदान (कुल संख्या 9,06,075) 
    तृतीय          -        जोधपुर       कुल गौवंश में 6.37% का योगदान  (कुल संख्या 8,48,343)

    इसकी निम्नलिखित नस्ले राजस्थान में पाई जाती है।

    1.    नागौरी (Nagauri)-

    • इसका उत्पत्ति क्षेत्र  ‘सुहालक' प्रदेश नागौर है। इस किस्म के बैल अधिकतर जोधपुर, बीकानेर, नागौर तथा नागौर से लगने वाले पड़ौसी जिलों में पाए जाते हैं। 
    • इस नस्ल की गायें कम दूध देती है। 
    • ये राजस्थान की कठोर जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूलित होते हैं। 
    • इनका रंग आम तौर पर सफेद या हल्का भूरा होता है। कुछ मामलों में सिर, चेहरा और कंधे थोड़ा भूरे रंग के होते हैं। 
    • यह बैल एक घोड़े की तरह लंबा और संकीर्ण चेहरे के साथ सफेद, उदार, बहुत सतर्क और चुस्त जानवर होता है। ये बैल बड़े और शक्तिशाली होते हैं। 
    • ये बैल गहरी रेत में भारी बोझ को खींचने का काम करने में सक्षम होते हैं। इनके पैरों की हड्डियों में हल्की होने की प्रवृत्ति होती है, लेकिन पैर मजबूत होते हैं। इस विशेषता ने इस नस्ल को चपलता और गति में विशिष्टता प्रदान की है। इस तरह यह चाल में एक घोड़े की तरह बदल जाता है।
    • इस नस्ल में औसत ऊंचाई नर की 148 सेमी तथा मादा की 124 सेमी होती है।
    • नर की औसत लम्बाई 145 सेमी तथा मादा की 138 सेमी होती है।
    • नर का औसत वजन 363 किग्रा तथा मादा का 318 किग्रा होता है।
    • पहले प्रसव के समय इसकी आयु औसतन 47.37 महीने होती है। औसतन प्रति 15.16 माह पश्चात गर्भ धारण करती है।
    • इसमें प्रति स्तन्यस्त्रवण सत्र में दूध उपज औसतन 603 किलो होती है।
    • इसके दूध में वसा औसत 5.8 % होती है।




    2.    कांकरेज (Kankrej)-

    • यह गुजरात में बनासकांठा जिले के भौगोलिक क्षेत्र कंक तालुका के नाम से इसका नाम कांकरेज पड़ा है।
    • राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों बाड़मेर, जोधपुर, सिरोही तथा जालौर जिलों में पाई जाती है।
    • इस नस्ल की गायें प्रतिदिन 5 से 10 लीटर दूध देती है। 
    • इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं। अतः ग्रामीण क्षेत्र में कृषि कार्यों का संचालन और सड़क परिवहन मुख्य रूप से इस नस्ल के बैलों द्वारा किया जाता है। दूध देने तथा कृषि व भारवहन कार्य में उपयोगी होने के कारण इस नस्ल के गौ-वंश को ‘द्वि-परियोजनीय नस्ल' कहते है। 
    • इसका रंग रजत-भूरा, लोह-भूरा या स्टील-भूरा होता हैं। 
    • यह गायों की सबसे भारी नस्लों में से एक है। 
    • इसमें मजबूत वीणा आकार के सींग मुड़े हुए मस्तक के बाहरी कोनों से निकलकर बाहर की ओर, फिर ऊपर व बाद में अंदर की ओर मुड़ते हैं तथा ये सींग काफी ऊंचाई तक चमड़ी के ढके रहते हैं। बड़े पेंडुलस व खुले कान होते हैं।

    कांकरेज की अनोखी 'सवाई चाल' -

    कांकरेज नस्ल की चाल अनोखी होती है। इसकी चाल सुकुमार (smooth) होती है, गति करते समय शरीर में शायद ही कोई हलचल होती है, चलते समय सिर काफी हद तक ऊँचा रखा जाता है, लम्बा डग भरा जाता है तथा गति करते समय आगे के खुर के पदचिन्ह पर पीछे का खुर रखा जाता है। इस चाल में पशु का पिछला पैर जमीन पर टिकने से पहले ही अगला पैर उठ जाता है। इस चाल को पशुपालकों द्वारा 'सवाई चाल' (1¼ Pace) कहा जाता है।
    • पहले प्रसव के समय इसकी आयु औसतन 47.3 महीने होती है। औसतन प्रति 15.06 माह पश्चात गर्भ धारण करती है।
    • इसमें प्रति स्तन्यस्त्रवण सत्र में दूध उपज औसतन 1738 किलो होती है।
    • इसके दूध में वसा 2.9 से 4.2 % तक होती है।
    • इस नस्ल में औसत ऊंचाई नर की 158 सेमी तथा मादा की 125 सेमी होती है।
    • नर की औसत लम्बाई 148 सेमी तथा मादा की 123 सेमी होती है।
    • नर का औसत वजन 525 किग्रा तथा मादा का 343 किग्रा होता है।

    3.    थारपारकर (Tharparkar or Malani) -

    • थारपारकर का नाम की उत्पत्ति थार रेगिस्तान से हुई है। 
    • इसका उत्पत्ति स्थल मालाणी (बाड़मेर) है। 
    • यह गायें अत्यधिक दूध के लिए प्रसिद्ध है, इसे स्थानीय भागों में ‘मालाणी नस्ल' के नाम से जाना जाता है। 
    • यह बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर में पाई जाती है। 
    • पशु सफेद या हल्के भूरे रंग के होते हैं। चेहरे व पीछे का भाग शरीर की तुलना में एक गहरे रंग का होता है। बैल की गर्दन में, कूबड़ पर और सामने व पीछे का चौथाई भाग गहरे रंग का होता है। 
    • इसके मध्यम दर्जे के सींग खम्भे के एकसमान सीधी रेखा में निकलकर धीरे-धीरे ऊपर जाकर अंदर की ओर मुड़ते हैं। नर में, सींग मोटे, छोटे होते हैं। 
    • पहले प्रसव के समय इसकी आयु औसतन 41.03 महीने होती है। औसतन प्रति 14.18 माह पश्चात गर्भ धारण करती है।
    • इसमें प्रति स्तन्यस्त्रवण सत्र में दूध उपज औसतन 1749 किलो होती है।
    • इसके दूध में वसा 4.72 से 4.9 % तक होती है।
    • इस नस्ल में औसत ऊंचाई नर की 133 सेमी तथा मादा की 130 सेमी होती है।
    • नर की औसत लम्बाई 142 सेमी तथा मादा की 132 सेमी होती है।
    • नर का औसत वजन 475 किग्रा तथा मादा का 295 किग्रा होता है।

    4.    राठी (Rathi)-

    • यह राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भागों में श्रीगंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर में पाई जाती है। 
    • इस नस्ल की गायें अत्यधिक दूध के लिए प्रसिद्ध है, किन्तु इस नस्ल के बैलों में भार वहन क्षमता कम होती है। अत्यधिक दूध के कारण इसे राजस्थान की कामधेनू भी कहते है।
    • राठी विशेष रूप से बीकानेर जिले के लुनकरनसर तहसील में केंद्रित हैं जिसे राठी क्षेत्र भी कहा जाता है। 
    • इसके नाम की उत्पत्ति को खानाबदोश जीवन जीने वाली राठ मुसलमान जाति से भी माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा लगता है कि राठी नस्ल साहिवाल रक्त की पूर्वनिर्धारितता के साथ साहिवाल, लाल सिंधी, थारपाकर और धन्नी नस्लों के मिश्रण से उत्पन्न हुई हैं।
    • नोहर (हनुमानगढ़) में राठी के लिए गोवंश परियोजना केन्द्र व फर्टिलिटी की स्थापना।
    •  आमतौर पर इन जानवरों का रंग शरीर पर सफेद धब्बों के साथ भूरा होता हैं, लेकिन सफेद धब्बे के साथ पूरी तरह से भूरे रंग के, या काले रंग के पशु भी अक्सर मिल जाते है। शरीर के बाकी हिस्सों की तुलना में निचले शरीर के अंग आम तौर पर रंग में हल्के होते हैं। इनके सींग आकार में मध्यम से कम होते हैं।
    • यह गाय औसतन 114.92 सेमी ऊँची तथा 131.33 सेमी लम्बी होती है। इसका औसत वजन 295 किग्रा होता है।
    • पहले प्रसव के समय इसकी आयु औसतन 46.4 महीने होती है। औसतन प्रति 17.07 माह पश्चात गर्भ धारण करती है।
    • इसमें प्रति स्तन्यस्त्रवण सत्र में दूध उपज औसतन 1560 किलो होती है।
    • इसके दूध में वसा 3.7 से 4 % तक होती है।

    5.    गिर (Gir) –

    • इसकी उत्पत्ति गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र विशेष रूप से गिर वन के आसपास के क्षेत्र से हुई है।
    • यह पशु दक्षिणी-पूर्वी भाग (अजमेर, चित्तौड़गढ़, बूंदी, कोटा आदि जिलों) में सर्वाधिक पाए जाते हैं।
    • इन्हें भोदाली, देसन, गुजराती, काठियावाड़ी, सॉर्थी और सूरती आदि नामों से भी जाना जाता हैं। इस नस्ल की गाय को राजस्थान में रेंडा एवं अजमेर में अजमेरा भी कहते हैं। यह भी द्विपरियोजनीय नस्ल है।
    • गिर गाएं दूध की अच्छी उत्पादक होती हैं।
    • गिर बैल सभी प्रकार की मिट्टी में भारी भार खींच सकता है, चाहे वह रेतीली, काली या चट्टानी मृदा हो।
    • अधिकांश गिर गाएं शुद्ध लाल रंग की होती है, हालांकि कुछ लाल धब्बेदार भी होती हैं।
    • इनके सींग असाधारण घुमावदार होते हैं, जो अर्द्ध चंद्रमा जैसे होते हैं। अनूठे ढंग से मुड़े हुए गोल सींग होते हैं।
    • गिर एक विश्व प्रसिद्ध नस्ल है जो तनाव की स्थिति में अपनी सहिष्णुता (tolerance) के लिए जानी जाती है।
    • इसे ब्राजील, यूएसए, वेनेज़ुएला और मेक्सिको द्वारा आयात भी किया गया है, और वहां इसका प्रजनन भी करवाया गया है।
    • इसमें कम खुराक में अधिक दूध देने की क्षमता होती है और यह विभिन्न उष्णकटिबंधीय बीमारियों से प्रतिरोधी भी होती है।
    • इसके बछड़ों को 8 से 12 महीने तक थन चूसने दिए जाते है।
    • दूध देने वाली गायों को आमतौर पर गांव में ही रखा जाता है, जबकि सूखी गाय और युवा बछड़ों को चराई के लिए भेजा जाता है।
    • पहले प्रसव के समय इसकी आयु औसतन 46.08 महीने होती है।
    • इसमें प्रति स्तन्यस्त्रवण सत्र में दूध उपज औसतन 2110 किलो होती है।
    • इसके दूध में वसा 4.6 % होती है।
    • गिर नस्ल में औसत ऊंचाई नर की 159.84 सेमी तथा मादा की 130.79 सेमी होती है।
    • नर की औसत लम्बाई 137.51 सेमी तथा मादा की 131.4 सेमी होती है।
    • नर का औसत वजन 544 किग्रा तथा मादा का 310 किग्रा होता है।

    6. मेवाती -

    • यह अलवर, भरतपुर में पाई जाती है। इसका दूसरा नाम कोसी, मेहावती व काठी भी है। 
    • ये मेवाती पशु शक्तिशाली किन्तु शांत व विनम्र किस्म के होते हैं तथा भारी जुताई, गाडी खींचने, गहरे कुओं से पानी निकालने के लिए उपयोगी होते हैं। यह भी द्विपरियोजनीय नस्ल है।
    • मेवाती के मवेशी सफेद होते हैं, जिनमें आमतौर पर गर्दन, कंधे आदि लगभग चौथाई भाग में गहरे रंग की छाया होती है। 
    • इनका चेहरा लंबा, संकड़ा और सीधा होता है लेकिन कभी-कभी माथा उभरा हुआ भी होता है। 
    • इन जानवरों के सींग बाहर की तरफ, ऊपर की ओर, अंदर की ओर घुमाव लिए होते हैं।
    • इस नस्ल में औसत ऊंचाई नर की 138.9 सेमी तथा मादा की 125.4 सेमी होती है।
    • नर की औसत लम्बाई 117.69 सेमी तथा मादा की 114.8 सेमी होती है।
    • नर का औसत वजन 385 किग्रा तथा मादा का 325 किग्रा होता है।
    • पहले प्रसव के समय इसकी आयु 45 से 54 महीने होती है। यह प्रति 12 से 18 माह पश्चात गर्भ धारण करती है।
    • इसमें प्रति स्तन्यस्त्रवण सत्र में दूध उपज औसतन 958 किलो होती है।

    7. साहीवाल गाय - 

    • यह नस्ल गंगानगर में पाई जाती है।  
    • यह ज़ेबू मवेशियों की सबसे अच्छी डेयरी नस्लों में से एक है।  
    • यह नस्ल पाकिस्तान के पंजाब के मोंटगोमेरी जिले के साहिवाल क्षेत्र के कारण इसका यह नाम पड़ा है। 
    • इसका रंग भूरा लाल होता है और इसके रंगों के शेड महोगनी लाल भूरे से अधिक भूरे लाल तक बदलता है। 
    • इसके बैल के शरीर के अंत भागों का रंग शेष शरीर से गहरा होता है। इन गायों का सिर चौड़ा, सींग छोटी और मोटी, तथा माथा मझोला होता है।
    • इसके सींग ठूंठ जैसे (स्टम्पी) व छोटे से माध्यम आकार के होते हैं, जो पहले बाहर की ओर, फिर ऊपर की ओर जाते है व अंत में अन्दर की ओर मुड़ते है। 
    • इस नस्ल की दृश्य विशेषता लाल रंग, छोटे सींग एवं ढीली त्वचा हैं।
    • इस नस्ल में औसत ऊंचाई नर की 170 सेमी तथा मादा की 124 सेमी होती है।
    • नर की औसत लम्बाई 150 सेमी तथा मादा की 131 सेमी होती है।
    • नर का औसत वजन 540 किग्रा तथा मादा का 327 किग्रा होता है।
    • पहले प्रसव के समय इसकी औसत आयु 41.7 महीने होती है। यह औसतन प्रति 15.6 माह पश्चात गर्भ धारण करती है।
    • इसमें प्रति स्तन्यस्त्रवण सत्र में दूध उपज औसतन 2325 किलो होती है।

    8. मालवी-

    • इसका मूलस्थान मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र (रतलाम, मंदसौर, उज्जैन ) है।राजस्थान में ये मध्यप्रदेश के मालवा से सटे क्षेत्र में पाए जाते हैं।
    • इसे महादेवपुरी, मंथानी भी कहते हैं। 
    • इस नस्ल की टाँगे छोटी व मजबूत होती है तथा छोटा कद व गठीला बदन होने के कारण यह पहाड़ी क्षेत्रों में उबड़ खाबड़ भूमि पर आसानी से चल सकती है। इसलिए मालवी नस्ल के बैल भारवाहक के रूप में प्रसिद्ध है।  
    • लेकिन इस नस्ल की गाएं दूध कम देती है। 
    • इनका रंग सफ़ेद या सफ़ेद भूरा होता है और नर का रंग अपेक्षाकृत गहरा होता है। नर में गर्दन, कूल्हे , कंधे व क्वार्टर लगभग काले होते हैं। गाय और बैल उम्र बढ़ने पर लगभग शुद्ध श्वेत रंग के हो जाते हैं। सफ़ेद रंग का मजबूत अच्छा शरीर व वीणा के आकार के सींग इस जानवर की दृश्य विशेषता है।

    9. हरियाणवी - 

    • इनका मूल स्थान हरियाणा है। यह रोहतक, हिसार, गुडगाँव, सोनीपत, जिंद, झज्जर (हरियाणा) के अलावा राजस्थान में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ चुरू, सीकर, टोंक, जयपुर में पाई जाती है। 
    • इसका उद्गम हिसार व हंसी नामक दो हरियाणवी नस्लों से हुआ है अतः इसे हंसी भी कहा जाता है। 
    • इस नस्ल के लिए कुम्हेर (भरतपुर) में वृषभ पालन केन्द्र स्थापित है।  
    • हरियाणवी उत्तर भारत की एक प्रमुख द्विपरियोजनीय नस्ल है जो व्यापक रूप से इंडो गंगा मैदानी इलाकों में फैली हुई है। 
    • इसका पालन मुख्य रूप से बैल उत्पादन के लिए किया जाता है किन्तु ये गाएं काफी अच्छा दूध भी देती है।
    • ये बैल शक्तिशाली होते हैं व सडक़ परिवहन तथा भारी हल चलाने के काम में उपयोगी होते है। 
    • हरयाणवी नस्ल के जानवर उच्च तापमान सहन कर सकते हैं। इस नस्ल के बैल ऊँचे कूबड़ के कारण अत्यंत आकर्षक होते हैं।
    • ये बैल पथरीले खेतों या भीषण गर्मी में कई घंटों तक लगातार काम कर सकते हैं और अत्यंत गर्मी में भी भारी वजन ढो कर प्रति घंटे 25 किलोमीटर चल सकते है।
    • इन जानवरों में लम्बा-संकरा चेहरा और छोटे सींग पाए जाते है।
    • ये जानवर रंग में सफेद या हल्के भूरे रंग के होते हैं। बैल सामने और पीछे के भाग में अपेक्षाकृत काले या गहरे भूरे रंग के होते हैं। 
    • ये गाएं सौम्य स्वभाव की होती हैं। ये प्रतिदिन 5-8 लीटर दूध देती हैं। कड़ी मेहनत का स्वभाव, उच्च दूध उत्पादन और किसी भी मौसम को सहने की क्षमता के कारण हरियाणा नस्ल विश्व के कई देशों में फैली है।
    राजस्थान में विदेशी नस्ल की गायें-
    (1) रेड डन - इसका मूल स्थान डेनमार्क है।  यह 20 से 25 लीटर दूध देती है।
    (2) हॉलिस्टन – इसका मूलस्थान हॉलेंड व अमेरिका है। यह सर्वाधिक दूध देने वाली नस्ल है। इसके दूध में वसा की मात्रा 5 प्रतिशत होती है। यह राज्य के मध्य व पूर्वी राजस्थान में पाली जाती है।
    (3) जर्सी – इसका मूलस्थान अमेरिका है । ये बहुत कम उम्र में दूध देने लगती है। इसके दूध में वसा की मात्रा 4 प्रतिशत होती है। यह राज्य के मध्य व पूर्वी राजस्थान में पाली जाती है।

    गायों में होने वाले प्रमुख रोग - 

    गाय में फाइलेरिऐसीस, थिलेरिएसिस, एनाप्लाज़्मोसिस, फैसिलियोसिस, बेबीसीयोसिस, व खुरपका, मुंहपका, रिंदरपेस्ट नामक रोग पाए जाते है।
        राजस्थान के प्रमुख गौवंश नस्ल केन्द्र-
        1. गिर - डग, झालावाड़
        2. जर्सी गाय - बस्सी, जयपुर
        3. मेवाती - अलवर
        4. थारपारकर - सूरतगढ़, गंगानगर
        5. हरियाणवी - कुम्हेर, भरतपुर
        6. राठी - नोहर, हनुमानगढ़
        7. नागौरी - नागौर
        8. थारपारकर - चांदन, जैसलमेर

        9. कांकरेज - चौहटन (बाड़मेर)


        Bovine animals in Rajasthan राजस्थान में गौ-वंश - (राजस्थान में पशुधन) Bovine animals in Rajasthan राजस्थान में गौ-वंश - (राजस्थान में पशुधन) Reviewed by asdfasdf on July 15, 2018 Rating: 5

        Fabulous Koftgiri art of Rajasthan - राजस्थान की बेहतरीन कोफ़्तगिरी कला

        July 08, 2018

        Koftgiri art of Rajasthan - राजस्थान की कोफ्तगिरी कला

        कोफ़्तगिरी एक पारंपरिक शिल्प है जिसका अभ्यास वर्षों से मेवाड़ के विभिन्न जिलों में किया जाता रहा है। वर्तमान यह शिल्प जयपुर, अलवर और उदयपुर में दृष्टिगोचर होता है। जयपुर में, आयात-निर्यात बाजार में कोफ़्तगिरी शिल्प के आर्टिकल्स देखे जा सकते हैं जबकि, उदयपुर में इसके क्लस्टर पाए जाते हैं। अलवर के तलवारसाज लोग इस कला से जुड़े हुए हैं। उदयपुर के सिकलीगर लोग इस कला में महारत रखते हैं। कोफ़्तगिरी एक मौसमी शिल्प नहीं है, बल्कि एक बार किसी कलाकार को जब इसमें उचित गुणवत्ता हासिल हो जाती है तो उसके कोफ़्तगिरी के उत्पाद की अत्यधिक मांग हो जाती है, जो वर्षभर बनी रहती है।



        कोफ़्त गिरी हथियारों को अलंकृत करने की कला है, जो भारत में मुगलों के प्रभाव के कारण उभरी थी। इसमें जडाव (इनले) और ओवरले दोनों प्रकार की कला का कार्य होता है। फौलाद अथवा लोहे पर सोने की सूक्ष्म कसीदाकारी कोफ्त गिरी कहलाती है। कोफ़्तगिरी शब्द लोहे को "पीट-पीट कर" उस पर किसी कलात्मक पैटर्न को उभारने की क्रिया को कहते हैं। यह एक ओवरले कला है जिसमे विशेष उपकरण द्वारा सोने / चांदी के तार को दबाकर जड़ा जाता है और फिर इसे गरम किया जाता है। यह किसी एक गहरे रंग की धातु पर हलके रंग की धातु को जड़ने की कला है, जिसमें लोह धातु की सतह को सोने या चांदी के पत्ते का प्रयोग करके गहनों जैसी एक सजावटी भव्यता प्रदान की जाती है। 
        • इस कलाशिल्प के लिए कोफ़्त शब्द प्रयुक्त किया गया है,
        • इसके कलाकार को कोफ़्तगर कहा जाता है और 
        • इस व्यवसाय को कोफ्तगिरी के नाम से जाना जाता है।

        कोफ़्तगिरि रूपांकन में सोने और चांदी के तारों की कई प्रकार की पारंपरिक रेखाएं और वक्र होती हैं। कॉफ्टगिरि की विशेषता है कि इसमें पूरे अलंकृत डिजाइन को मुख्य रूप से तार द्वारा निर्मित किया जाता है। इसकी मुख्य सामग्री अजमेर और भीलवाड़ा से प्राप्त की जाती है और फिर आवश्यक उपकरणों का उपयोग करके वांछित अलंकृत रूपान्कनों को मेंन्युअल रूप से बनाया जाता है। चूंकि इस शिल्प में गहन श्रम लगता है, इसके उत्पादन में महिलाएं और पुरुष दोनों ही कार्य करते हैं। पुरुष भारी मैनुअल श्रम करते हैं जबकि महिलाएं सामान की प्रारंभिक तैयारी, अंतिम फिनिश और पैकेजिंग का कार्य करती हैं।

        • मुख्य रूप से कोफ्त गिरी शिल्प का इस्तेमाल ढाल, तलवारों व खंजर और अन्य उपयोगी सामग्री जैसे डिब्बे, बक्से, भोजन काटने और खाने के कटलरी सामान, शिकार चाकू, छुरी इत्यादि के निर्माण में किया जाता है।
        • इसमें कटार के विभिन्न जानवरों के सिर के आकार में सुंदर हैंडल बनाए जाते हैं। 
        • हथियारों के कवर पर शिकार के दृश्य उत्कीर्ण किये जाते हैं। 
        • पुराने कोफ्त्गीर कारीगरों में अरबी शब्दों को उत्कीर्ण करने में बहुत बढ़िया कौशल हासिल था। अरबी अक्षरों की वक्रता में परिशुद्धता की आवश्यकता होती है, वक्र में भिन्नता के कारण संदेश का अर्थ बदल सकता है।
        लगभग सौ वर्ष उससे भी पहले कोफ़्त गिरि का व्यापक रूप से उपयोग गाड़िया-लोहार द्वारा अपने राजपूत ग्राहकों के लिए पारंपरिक हथियारों और कवच के निर्माण में किया जाता था। ये परंपरा अब अप्रचलित हो गई है।

        Koftgiri is traditional craft as it is practiced in Mewar district since decades. This craft can be seen in Jaipur and Udaipur nowadays. In Jaipur, Koftgiri can be seen in the import-export market. Whereas, Udaipur, is where clusters are found where Koftgiri is practiced. Koftgiri is not a seasonal craft. Once a proper quality is achieved the product is highly sought after.


        Koftgiri is a type of decoration originating in India with the Mughals as a means to decorate arms and weaponry. It can be both an inlay and overlay art. The word Koftgiri refers to the action of “beating” the pattern into the iron, an art of inlaying light metal on a dark one to provide a surface with an ornamental appearance with elaborate and lavish chiselling gold or silver leaf. For this craft the term Koft is applied, and the work-person is known as a Koftgar (really a glider) and the trade as Koftgari.



        Koftgiri motifs are traditional with lots of lines and curves which is possible with the handling of Gold and Silver wire. The specialty of Koftgiris that the whole design is produced mainly by wire. Main materials are sourced from karkhanasat Ajmer and Bhilwara, and then manually created into desired forms using the essential tools. As this craft is labour intensive both women and men are involved in the process. While the women do the initial preparation of the material, final finish and packaging of the objects, the men do most of the heavy manual labour.


        Primarily Koftgiri craft was used in creating handles of swords and daggers and articles of utility such as boxes, cutlery, hunting knives, etc. Until a hundred years or so ago, Koftgiri, was widely used by the Gadi-Lohars, the traditional armourers of Rajasthan, to create a range of weaponry and armour for the use of their Rajput clientele, the tradition has become obsolete now.
        Fabulous Koftgiri art of Rajasthan - राजस्थान की बेहतरीन कोफ़्तगिरी कला Fabulous Koftgiri art of Rajasthan - राजस्थान की बेहतरीन कोफ़्तगिरी कला Reviewed by asdfasdf on July 08, 2018 Rating: 5

        Salient Features of Jai Samand Dam जयसमंद बांध मुख्य विशेषताएं

        July 05, 2018



        S.No. Attribute विशेषता Value विवरण
        1. Name of Dam बांध का नाम Jai Samand Dam जयसमंद बांध
        2. Dam Name Alias उपनाम Jai Samand जयसमंद
        3. River नदी Gomti गोमती
        4. River नदी Gomti गोमती
        5. Nearest City निकटतम शहर Sarada सराडा
        6. District जिला Udaipur उदयपुर
        7. State राज्य Rajasthan राजस्थान
        8. Basin बेसिन Mahi माही
        9. Status स्थिति Completed पूर्ण
        10. Purpose of Dam बांध का उद्देश्य Irrigation सिंचाई
        11. Year of Commencement निर्माण प्रारम्भ वर्ष 1711
        12. Year of Completion निर्माण पूर्ण होने का वर्ष 1730
        13.Operating & Maintainance Agency संचालन और रखरखाव एजेंसीWRD,Govt. of Rajasthanजल संसाधन विभाग, राजस्थान
        14. Dam(Interstate/ International) नहीं
        15 Dam's(Interstate/ International)Agreement नहीं
        16. Parliamentary Constituency लोकसभा क्षेत्र Udaipur उदयपुर
        17. Seismic Zone भूकंपीय क्षेत्र Seismic Zone-II भूकंपीय क्षेत्र -2
        18.Type of Dam बांध का प्रकार Earthen/ Gravity & Masonry मिट्टी का / गुरुत्वाकर्षण और चिनाई
        19.Length of Dam (m) लम्बाई 457.4 मीटर
        20.Max Height above Foundation (m)फाउंडेशन से ऊपर अधिकतम ऊंचाई 42.06 m
        21. Design Flood (cumec) 5405
        22. Length of Spillway (m) स्पिलवे की लंबाई 137.2 m
        22.Crest Level of Spillway (m) स्पिलवे का क्रेस्ट लेवल 295.47
        23.Spillway Capacity (cumec) स्पिलवे क्षमता (Cumec) 5405
        24.Type of Spillway Gates स्पिलवे गेट्स का प्रकार Vertical Lift उर्ध्वाधर लिफ्ट
        25.No. of Spillway Gates स्पिलवे गेट्स की संख्या 2
        26.Size of Spillway Gates (m x m) गेट्स आकार 3.05x5.03

        Salient Features of Jai Samand Dam जयसमंद बांध मुख्य विशेषताएं Salient Features of  Jai Samand Dam जयसमंद बांध मुख्य विशेषताएं Reviewed by asdfasdf on July 05, 2018 Rating: 5

        Rajasthan Current Affairs - जून 2018

        July 01, 2018

        मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे को मिला ’पर्सन ऑफ द ईयर’ अवार्ड

        • राजस्थान को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पायोनियर स्टेट बनाने के लिए मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे को मिली ’पर्सन ऑफ द ईयर’ अवॉर्ड प्राप्त हुआ है। 
        • श्रीमती राजे की ओर से वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री राजपाल सिंह शेखावत ने पिछले दिनों नई दिल्ली में आयोजित बीडब्ल्यू बिजनेस वर्ल्ड डिजिटल इंडिया समिट के दौरान यह पुरस्कार प्राप्त किया था। 
        • राज्य मेें ई-गवर्नेंस को मजबूती प्रदान करने और सेवाओं डिजिटलीकरण की दिशा में किये गए प्रयासों के लिए पहली बार किसी मुख्यमंत्री को यह सम्मान दिया गया। 
        • उल्लेखनीय है कि इस समिट के दौरान केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य के विभिन्न सरकारी विभागों के बीच प्रतिस्पर्धा में राजस्थान सरकार के आईटी और संचार विभाग को 10 नवाचारों के लिए पुरस्कार मिले थे। 
        • इनमें अभय कमांड सेंटर, महिला सुरक्षा एप, इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड, आई-स्टार्ट, भामाशाह योजना, सीएम हेल्पलाइन, राजस्थान सम्पर्क, राज-काज, ई-मित्र तथा राजस्थान पेमेंट प्लेटफार्म को पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

          मुख्यमंत्री को ई-गवर्नेंस के लिए ‘चीफ मिनिस्टर ऑफ द ईयर‘ अवार्ड मिला

        • मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे को 23 जून २०१८ ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए स्कॉच ग्रुप द्वारा ‘चीफ मिनिस्टर ऑफ द ईयर‘ अवार्ड प्रदान कर सम्मानित किया गया है।
        • मुख्यमंत्री को यह सम्मान शनिवार को नई दिल्ली में  आयोजित 52वें स्कॉच समिट ‘वन नेशन वन प्लेटफॉर्म‘ में प्रदान किया गया।
        • समारोह में डिजीटल इंडिया कार्यक्रम को ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में बेहतर ढंग से लागू करने तथा गांव में बैठे आम व्यक्ति को लाभान्वित करने के लिए किए जा रहे अभिनव प्रयोग के लिए मुख्यमंत्री व राज्य सरकार के प्रयासों को सराहा गया।
        • समिट में राजस्थान की भामाशाह योजना, भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना, ई-मित्र, सीएम हैल्प लाइन, बिग डाटा एनेलेसिस, ई-ज्ञान, ई-संचार, ई-मंडी, राजकाज, राज नेट, राज ई-वैलेट, ई-मित्र प्लस, अभय कमांड सेंटर आदि के लिए सराहना की गई।

         नीति आयोग के प्रतिवेदन में राजस्थान जल संरक्षण में पहले स्थान पर

        • नीति आयोग द्वारा जल संवर्धन, जल संरक्षण, जल स्त्रोतों के पुनर्वास तथा भूगर्भीय जल में बढ़ोतरी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यो के लिय राजस्थान को पूरे देश में पहला स्थान दिया गया है। 
        • राजस्थान नदी बेसिन एवं जल संसाधन योजना प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री श्रीराम वेदिरे ने बताया कि नीति आयोग की रिपोर्ट में मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में निर्मित जल संरक्षण संरचनाओं के कारण प्रदेश में जल स्तर से वृद्धि होने के साथ ही सिंचाई क्षमता में भी 81 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है।
        • गत तीन वर्षों में मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में लगभग 4 लाख जल संरक्षण सरंचनाओं का निर्माण किया गया तथा डेढ़ करोड़ पौधारोपण किया गया।
        • प्रदेश में 21 जिलों में भू-जल स्तर में लगभग 5 फुट की वृद्धि हुई है तथा  अभियान में प्रभावित क्षेत्रों में टेंकरों से जल वितरण में भी 56 प्रतिशत की कमी आई है।

            हैड कॉन्स्टेबल श्री राजूलाल कबड्डी प्रतियोगिता में जायेंगे दुबई-

            राजस्थान पुलिस के हैड कॉन्स्टेबल श्री राजूलाल का चयन दुबई (यू.ए.ई.) में अन्तरराष्ट्रीय कबड्डी संघ द्वारा 22 से 30 जून 2018 तक आयोजित होने वाली कबड्डी मास्टर्स दुबई-2018 प्रतियोगिता में भाग लेने वाली भारतीय टीम में हुआ है। 

            प्रतापगढ़ के महेश राजसोनी को लंदन में मिला भारत गौरव अवार्ड

            • दक्षिणी राजस्थान के प्रतापगढ़ के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थेवा कलाकार और राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित श्री महेश राजसोनी को लंदन में ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ कॉमन्स मे पिछले दिनों आयोजित एक कार्यक्रम में विश्व में भारतीय कला का नाम रोशन करने और व्यक्तिगत विशिष्ठ उपलब्धि के लिए सम्मानित किया गया। 
            • श्री राजसोनी को एक भारतीय संस्था द्वारा पुरस्कार सम्मान में प्रमाण पत्र, दुपट्टा व स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।

            श्री अशोक पण्ड्या राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष मनोनीत

            • राज्य सरकार ने 31 मई को आदेश जारी कर राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर के अध्यक्ष पद पर श्री अशोक पण्ड्या को मनोनीत किया है।

            हैप्पीनेस इंडेक्स में राजस्थान का 17 वां स्थान-

            • देश के 23 राज्यों में राजस्थान का 17 वां स्थान है।
            • देश के चुनिंदा 16 शहरों के हैप्पीनेस इंडेक्स 2017 (प्रसन्नता सूचकांक) में जयपुर को 14 वें नंबर पर रखा गया है। 
            • चंडीगढ़ इस श्रेणी में प्रथम स्थान पर है। 
            • इस मामले में केरल, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश व गोवा जैसे छोटे राज्य सबसे ऊपर है, वहीं राजस्थान, बिहार, झारखण्ड और उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्यों के साथ पिछड़े राज्यों की सूची में शामिल हैं।

            सेतिया राजस्थान पंजाबी भाषा अकादमी के अध्यक्ष मनोनीत-

            • राज्य सरकार ने 31 मई को आदेश जारी कर राजस्थान पंजाबी भाषा अकादमी, श्रीगंगानगर के अध्यक्ष पद पर श्री रवि सेतिया को मनोनीत किया है।

            स्टेट क्वालिटी टीम का नेशनल अवार्ड मिला एनएचएम राजस्थान को

            • केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे ने अप्रेल माह में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) राजस्थान को स्टेट क्वालिटी एश्योरेंस टीम अवार्ड से नई दिल्ली में आयोजित समारोह में प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया है। 
            • राजस्थान को यह पुरस्कार प्राप्त करने का प्रथम अवसर है। 
            • उल्लेखनीय है कि जिला अस्पताल राजसंमद को राज्य स्तर पर नेशनल क्वालिटी असुरेंस अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

            राजस्थान पर्यटन को मिला बेस्ट मार्केटिंग इनिशिएटिव-डोमेस्टिक टूरिज्म अवार्ड

            • घरेलू पर्यटको के लिए सर्वश्रेष्ठ मार्केटिंग पहल करने में अग्रणी रहने के लिए राजस्थान पर्यटन विभाग को अप्रेल माह में राष्ट्रीय स्तर पर एक और अवार्ड प्राप्त हुआ है। 
            • नई दिल्ली में देश के एक प्रतिष्टित समूह द्वारा आयोजित समारोह में राजस्थान पर्यटन विभाग ने टाइम ट्रेवल अवार्ड पुरस्कार सम्मान ग्रहण किया। 
            • पुरस्कार में राजस्थान को घरेलू पर्यटको के लिए सर्वश्रेष्ठ मार्केटिंग पहल करने में अग्रणी रहने की श्रेणी में प्रतिष्टित समूह द्वारा स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।

            'स्वास्थ्य दल आपके द्वार' सघन अभियान-

            • पूरे राजस्थान में 'स्वास्थ्य दल आपके द्वार' सघन अभियान 21-23 मार्च, 2018 को चलाया गया।
            • अभियान के दौरान डोर-टू-डोर जाकर मच्छरों को भगाने एवं मौसमी बीमारियों-स्वाइन फ्लू, डेंगू, चिकनगुनिया एवं स्क्रब टाइफस जैसे रोगों की रोकथाम हेतु व्यापक स्तर पर जन चेतना जाग्रत की गई।

            प्रदेश में न्यूनतम दैनिक मजदूरी बढ़ी

            • मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी की दरें बढ़ाने की घोषणा की है। उन्होंने बुधवार 6 जून को सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा में जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान कहा कि प्रदेश में श्रमिक वर्ग को बढ़ती हुई महंगाई से राहत देने के लिए न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि की गई है।
            • नई बढ़ी हुई दरें 1 जनवरी, 2018 से प्रभावी होंगी।
            • न्यूनतम मजदूरी की सभी श्रेणियों में 6 रूपये प्रतिदिन की वृद्धि की गई है। राज्य सरकार द्वारा बुधवार को जारी अधिसूचना के अनुसार निम्नानुसार होगी-
            • अकुशल श्रमिक की दैनिक मजदूरी 207 रूपये से बढ़ाकर 213 रूपये,
            • अर्धकुशल श्रमिक की मजदूरी 217 से बढ़ाकर 223 रूपये,
            • कुशल श्रमिक की मजदूरी 227 से बढ़ाकर 233 रूपये एवं
            • उच्च कुशल श्रमिक की मजदूरी 277 रूपये से बढ़ाकर 283 रूपये ।

            स्वजल पायलट परियोजना का शुभारंभ -

            • केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती ने राजस्थान में करौली जिले के ’’भीकमपुरा गांव’’ में
            • ''स्वजल पायलट परियोजना'' का 27 फरवरी, 2018 को शुभारंभ किया गया।
            • इस परियोजना से वर्ष भर स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित होने के अलावा रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होगें।
            • स्वजल परियोजना सतत पेयजल आपूर्ति हेतु समुदाय के स्वामित्व वाला पेयजल कार्यक्रम है।
            • परियोजना की लागत का 90 प्रतिशत खर्च सरकार तथा 10 प्रतिशत समुदाय के द्वारा वहन किया जायेगा।
            • परियोजना का परिचालन एवं प्रबंधन स्थानीय ग्रामीणों द्वारा किया जायेगा।
            • योजना के अनुसार गांवों में चार जलाशयों का निर्माण किया जायेगा और लगभग 300 आवासों में नल के कनेक्शन उपलब्ध करवाएं जाएगें।   

                राज्य का पहले मेगा फूड पार्क रूपनगढ़ में -

                • राज्य का प्रथम मेगा फूड पार्क (नाम- ग्रीनटेक मेगा फूड पार्क लिमिटेड) रूपनगढ (किशनगढ़ तहसील, अजमेर, राजस्थान) में स्थापित किया गया है।
                • यह राजस्थान में स्थापित पहला (देश का 13 वां) मेगा फूड पार्क है।
                • केन्द्र सरकार प्रत्येक मेगा फूड पार्क के लिये 50 करोड़ तक की सीमा तक वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं।
                • केन्द्र सरकार ने देश भर में 42 मेगा फूड पार्क बनाने की योजना 2008 में शुरू की थी।

                भिवाड़ी में बनेगा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी केंद्र -

                • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) के सोलर (सौर) चरखा मिशन की शुरूआत राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने 27 जून 2018 को नई दिल्ली में की।

              • इस मिशन के अंतर्गत 50 क्लस्टर शामिल होंगे एवं प्रत्येक कलस्टर में 400 से 2000 शिल्पकारों (कारीगरों) को काम करने का मौका मिलेगा। 
              • उत्तर-पूर्व समेत पूरे देश में 15 नए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, जिनमें से 10 केंद्र मार्च 2019 तक शुरू हो जाएंगे। 
              • प्रत्येक केंद्र को 150 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है। 
              • 10 केंद्र जो जल्द ही शुरू हो जाएंगे, वह दुर्ग (छत्तीसगढ़),भिवाड़ी (राजस्थान), रोहतक (हरियाणा), विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश), बेंगलूरू (कर्नाटक), सितारगंज (उत्तराखंड), बद्दी (हिमाचल प्रदेश), भोपाल (मध्य प्रदेश), कानपुर (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।

              महाराणा प्रताप जयन्ती पर हल्दीघाटी में तीन दिवसीय मेला

              • 16 जून को महाराणा प्रताप की 478 वी जयन्ती राजसमन्द जिले भर में समारोहपूर्वक मनाई गई। 
              • इस अवसर पर महाराणा प्रताप की समरस्थली हल्दीघाटी (खमनोर) के शाहीबाग में तीन दिवसीय परंपरागत मेला आयोजित किया गया, जिसका उद्घाटन उच्च शिक्षा मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी ने किया।
              • मेले में अश्व प्रतियोगिता तथा तीरन्दाजी आदि की स्पर्धाओंका आयोजन भी हुआ।
              • उच्च शिक्षा मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी ने कहा कि शौर्य-पराक्रम और साहस की प्रेरणा का संचार करने वाले महाराणा प्रताप मातृभूमि की सेवा और रक्षा के प्रति समर्पण के प्रतीक हैं। महाराणा प्रताप के जीवन चरित्र और मातृभूमि के प्रति सेवा कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है।

              राज्य में बनेगा पहला दिव्यांग विश्वविद्यालय-

              सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. अरूण चतुर्वेदी ने कहा कि राजस्थान देश का पहला राज्य है जहां दिव्यांग विश्वविद्यालय की घोषणा की गई है, जिसे आगामी शिक्षा सत्र से शुरू करने का प्रयास किया जायेगा। जामडोली में अस्थाई तौर पर उपलब्ध भवनों में शुरू करने के लिए कार्य योजना तैयार की जा रही है। दिव्यांग विश्वविद्यालय के नियम लगभग तैयार हो चुके है जिसे केबिनेट से अनुमोदन कराया जाएगा।

              ई-सखी कार्यक्रम-

              • ई-सखी सरकार का एक नवाचार कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य महिलाओं को ई-सखी के रूप में डिजीटल साक्षर करना है। 
              • इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत पर 5 महिलाओं को एवं शहरों के प्रत्येक वार्ड में 10 महिलाओं को ई-सखी के रूप में डिजीटली साक्षर किया जायेगा। 
              • इस प्रकार प्रशिक्षित ई-सखियां उस ग्राम पंचायत के लोगों को डिजीटल रूप से साक्षर कर राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं एवं एप के बारे में बतायेंगे कि किस प्रकार वे डिजीटल रूप से साक्षर होकर राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ सुगमता से ले सकते है। ये महिलाएं लोगों को ई-पीडीएस, राजधरा, राजसम्पर्क, महिला सुरक्षा एप, भामाशाह योजना, एसएसओ आईडी, भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना तथा ई-मित्र योजना जैसे डिजीटल प्लेटफार्मस के बारे में जानकारी देगी।

              अजमेर के किले में बन रही है हैरिटेज फिल्म लाइब्रेरी-

              • शिक्षा एवं राज्यमंत्री श्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि अजमेर के किले में बन रही हैरिटेज फिल्म लाइब्रेरी अजमेर की विरासत है। लाइब्रेरी में वे दुर्लभ फिल्में मौजूद हैं जो देश की आजादी, संस्कृति, वीरता, राष्ट्र नायकों और इतिहास की बड़ी घटनाओं को दर्शाती हैं।
              • लाइब्रेरी में करीब 4000 दुर्लभ फिल्में संरक्षित रहेंगी। इनमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, महान सुभाष चंद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, भारत-पाकिस्तान युद्ध, देश में लगने वाले मेलों तथा देश के इतिहास व संस्कृति से जुड़ें वो अनमोल फुटेज शामिल हैं, जो आज विपुल धनराशि खर्च करने के बाद भी नहीं मिलेंगे। 
              • इनमें से करीब 1600 फिल्मों को डिजीटल रूप में संरक्षित किया जा रहा है। जल्द ही यह फिल्में लाइब्रेरी में आमजन के देखने के लिए उपलब्ध होंगी। 
              • मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने राज्य की विरासत को संरक्षित करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत बजट में फिल्म लाइब्रेरी बनाने की घोषणा की थी। 
              • इसके लिए दो करोड़ रुपए का विशेष बजट भी आवंटित किया गया है। 
              • लाइब्रेरी को हैरिटेज लुक दिया गया है। यहां 16-16 सीटों के दो मिनी थियेटर बनाए गए हैं। इनमें  नाममात्र का शुल्क देकर फिल्मेें देखी जा सकेंगी। 
              • इसके अलावा यहां छह कियोस्क बनाई जा रही हैं जहां शुल्क देकर पर्यटक अपनी मनचाही फिल्म एकल रूप में देख सकते हैं। इसके साथ यहां वाचनालय तथा अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध होंगी।

              अरावली एक्सप्रेस अब अमरापुर एक्सप्रेस के नाम से होगी संचालित

              • जयपुर से मुंबई के बीच चलने वाली अरावली एक्सप्रेस अब अमरापुर एक्सप्रेस के नाम से संचालित होगी।
              • रेल मंत्रालय द्वारा जारी किये गयेे निर्देशों की अनुपालना में रेलवे बोर्ड ने आदेश जारी कर अरावली एक्सप्रेस का नाम परिवर्तित कर अमरापुर एक्सप्रेस कर दिया है। 
              • जयपुर स्थित अमरापुर स्थान सिंधी समाज का मुख्य श्रृद्धा स्थल है एवं पवित्र 300 दरबार का शीर्ष है। यहां देश के कोने-कोने से सिंधी समुदाय के लोग आते हैं। 

              खेल राज्य मंत्री द्वारा अर्जुन विजेता श्री लिम्बा राम के लिए 5 लाख रुपए -

              युवा मामले एवं खेल राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कर्नल राज्यवर्धन राठौर ने पूर्व अंतर्राष्ट्रीय तीरंदाज एवं अर्जुन पुरस्कार विजेता श्री लिम्बा राम के लिए 5 लाख रुपये की विशेष वित्तीय सहायता को मंजूरी दी है। श्री लिम्बा राम न्यूरो जेनरेटिव बीमारी या स्नायु संबंधी रोग से पीड़ित हैं और उनका इलाज जयपुर में चल रहा है। वह राजस्थान की राज्य सरकार के लिए कार्यरत हैं और उन्हें खिलाड़ियों के लिए पंडित दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष योजना के तहत निर्धारित 4 लाख रुपये की सीमा से ज्यादा वेतन मिलता है। मंत्री महोदय ने इस कोष के अध्यक्ष की हैसियत से निर्धारित शर्त में ढील दी है। मंत्री महोदय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए विवेकाधीन अनुबंध का उपयोग कर 5 लाख रुपये को मंजूरी दी है कि श्री लिम्बा राम की विधवा मां, विधवा बहन एवं उसके बच्चे, विधवा सास और बेरोजगार भाई उन्हीं पर निर्भर हैं। 

              भामाशाह प्राधिकरण में अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति

              राज्य सरकार ने 29 जून को आदेश जारी कर भामाशाह प्राधिकरण में अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति की है जो निम्नानुसार होंगे -
              • अध्यक्ष, भामाशाह प्राधिकरण -   मुख्य सचिव 
              • सदस्य सचिव भामाशाह प्राधिकरण -  महानिदेशक भामाशाह प्राधिकरण 
              प्राधिकरण में शासकीय सदस्य-   
              1. प्रभारी सचिव - वित्त विभाग, 
              2. सचिव, आयोजना विभाग
              3. सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग 
              4. निदेशक, आर्थिक एवं संख्यिकी विभाग
              5. संयुक्त शासन सचिव, आर्थिक एवं संख्यिकी विभाग
              भामाशाह प्राधिकरण दो गैर शासकीय सदस्य- नियुक्ति होना शेष
              आदेश के अनुसार गैर-शासकीय सदस्यों का कार्यकाल उनके कार्यग्रहण करने की तिथि से 3 वर्ष तक अथवा राज्य सरकार के प्रसादपर्यंत, जो भी पहले हो रहेगा।

              श्री अखिल अरोरा भामाशाह प्राधिकरण के महानिदेशक नियुक्त

              • राज्य सरकार ने आदेश जारी कर आयोजना विभाग के प्रमुख शासन सचिव श्री अखिल अरोरा को भामाशाह प्राधिकरण का महानिदेशक नियुक्त किया है।

              आंचल मदर मिल्क बैंक कार्यक्रम -

              मुख्यमंत्री की बजट घोषणा वित्तीय वर्ष 2015-16 की अनुपालना में प्रदेश में प्रमुख 18 जिला चिकित्सालयों में आंचल मदर मिल्क बैंक संचालित किये गए हैं। कार्यक्रम में अब तक 31 हजार से अधिक महिलाओं द्वारा अपना दूध दान किया गया है। इन मदर मिल्क बैंकों में संग्रहित किए जा रहे दुग्ध को ऎसे जरूरतमंद नवजात शिशुओं के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है जो कि विभिन्न कारणों से स्तनपान नहीं कर पाते हैं।  अब तक लगभग 20 हजार से अधिक नवजात शिशुओं को संग्रहित मां का दूध उपलब्ध कराया जा चुका है।

              ‘‘राजस्थान 147’’ प्रदर्शनी का आयोजन मुम्बई में-

              • राजस्थान के नमाचीन 147 कलाकारो की चुनिन्दा कलाकृतियों की प्रदर्शनी ‘‘राजस्थान 147’’ का आयोजन राजस्थान ललित कला अकादमी की ओर से मुम्बई के जहांगीर आर्ट गैलेरी में किया गया। 
              • इस प्रदर्शनी में राजस्थान की समसामयिक कला धारा जिसमें मिनिएचर, पेन्टिंग, प्रिन्टिंग्स, ग्राफिक्स, मूर्ति शिल्प सहित अनेक परम्परागत कला कौशल  से युक्त कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया। 
              • प्रदर्शनी में दिवंगत कलाकार श्री रणजीतसिंह चूंडावत एवं श्री सुरेन्द्र पाल जोशी की कलाकृतियों को भी अकादमी की ओर से प्रदर्शित करके उन्हें श्रृद्धांजलि भी दी गई।  
              • प्रदर्शनी में ख्यातनाम कलाकार पद्यश्री अर्जुन प्रजापति एवं शाकिर अली तथा सर्वश्री चरन शर्मा, अशोक गौड़, अंकित पटेल, युगलकिशोर शर्मा, शैल चोयल, अब्बास बाटलीवाला सहित राज्य के चयनित कलाकारो की कला विधाओं का प्रदर्शन किया गया है। 
              • प्रदर्शनी में मैटल स्क्रेप कलाकृति ‘‘द गोट’’, पैन व इंक ‘‘ड्राईंग‘‘, एक्रेलिक आन कैनवास में ‘‘डेजर्ट इन लैण्ड स्कैप’’ ‘‘पन्ना मीना कुण्ड’’, ब्लैक मार्बल्स ‘‘लाईफ आफ वामा’’, लाईम स्टोन ‘‘अनटाईटल्स’’ कलाकृतियां काफी चर्चित रही। 
              • 26 जून, 2018 को प्रारंभ हुई ये प्रदर्शनी 2 जुलाई, 2018 तक रहेगी।
              • राजस्थान ललित कला अकादमी के अध्यक्ष श्री डॉ. अश्विन एम. दलवी है। 

              राज्य स्तरीय भामाशाह सम्मान समारोह में 117 भामाशाहों का हुआ सम्मान -

              • अकबर से हुए संघर्ष के दौरान जब मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप की आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई थी तथा वे अरावली के जंगलों में भटक रहे थे। ऐसे विकट समय में जब उन्हें अपनी सेना के पुनर्गठन करने के लिए धन की अत्यंत आवश्यकता थी तब दानवीर भामाशाह ने महाराणा प्रताप को अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था। महाराणा प्रताप के लिए अपना ख़जाना खोल देने वाले त्यागी महामना इतिहास पुरुष भामाशाह की जयंती 28 जून को जयपुर के बिड़ला सभागार में आयोजित हुए राज्य स्तरीय भामाशाह सम्मान समारोह 2018 में 117 भामाशाहों तथा 50 प्रेरकों को सम्मानित किया गया। 
              • गौरतलब है कि शिक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय आर्थिक सहयोग करने वाले व्यक्तियों या संस्थाओं को भामाशाह के रूप में सम्मानित किया जाता है। 
              • इस वर्ष के राज्य स्तरीय भामाशाह सम्मान समारोह में एक करोड़ से 20 करोड़ रुपये राशि तक का सहयोग देने वाले 20 भामाशाहों तथा 15 लाख से एक करोड़ रुपये राशि का सहयोग देने वाले 96 भामाशाहों का सम्मान किया गया है। 
              • राज्य स्तरीय भामाशाह सम्मान समारोह में इस वर्ष न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया को  उनके 763 लाख रुपये राशि के सर्वाधिक सहयोग के लिए सम्मानित किया गया। 
              • इसी प्रकार हिन्दुस्तान जिंक राजपुरा दरीबा कॉम्पलेक्स, रेल मगरा द्वारा 665.55 लाख, हीरो मोटोकोर्प लिमिटेड, आमेर द्वारा 379.07 लाख, क्यू.आर.जी.फाउण्डेशन अलवर द्वारा 348.79 लाख, चम्बल फर्टिलाइजर्स एण्ड केमिकल्स लिमिटेड कोटा द्वारा 336.04 लाख, श्री राजेश धशोरा, वाइस प्रेसीडेंट हिंदुस्तान जिंक, भीलवाड़ा द्वारा 336 लाख, संघवी शांतिलाल लाधमाल मरडिया जैन गुलालवाड़ी, मुम्बई द्वारा 316.00 लाख, श्री हरिप्रसाद बुधिया द्वारा 308.85 लाख रुपये राशि का शिक्षा क्षेत्र में सहयोग किए जाने पर उन्हें सम्मानित किया गया।
              • दानदाताओं को शिक्षा भूषण अलंकरण प्रदान कर राज्य स्तरीय समारोह में सम्मानित किया गया।
              • राज्य स्तरीय भामााशाह सम्मान समारोह में भामाशाहों को प्रेरित कर शिक्षा क्षेत्र में विभिन्न स्तरों पर कार्य करवाने वाले 50 चयनित प्रेरकों को भी गुरुवार को बिड़ला सभागार में सम्मानित किया गया। 
              • शैक्षिक क्षेत्र में इस बार रिकॉर्ड 8151.29 लाख रुपये राशि का सहयोग प्राप्त किया गया है। 

              ‘मिसाल’ जिला स्वास्थ्य रैंकिंग का शुभारम्भ 

              • स्वास्थ्य सूचकांकों के आधार पर राज्य के जिलों को रैंकिंग प्रदान करने के लिए जिस सिस्टम का उपयोग किया जाएगा, उसे 'मिसाल' नाम दिया गया है।
              • मिसाल’ डिस्ट्रक हैल्थ रैंकिंग सिस्टम के माध्यम से मातृ, नवजात, शिशु स्वास्थ्य सूचकांक, पूर्ण टीकाकरण कवरेज, मरीजों की संतुष्टि, संस्थागत प्रसवों का प्रतिशत, प्रसव पूर्व जांच का कवरेज, परिवार कल्याण कार्यक्रम, भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना, टीबी सहित विभिन्न मापदण्डों पर जिले का स्कोर कार्ड तैयार किया जायेगा। 
              • साथ ही राजकीय चिकित्सा संस्थानों पर दवाओं, जांच की उपलब्धता, चिकित्सक की उपस्थिति, अधिकारियों द्वारा की जाने वाली ओनलाईन मॉनीटरिंग, मेडिकल मोबाईल यूनिट्स शिविरों आदि मापदण्डों पर संस्थान को परखा जायेगा। 
              • मई माह में तैयार डिस्टि्रक्ट हैल्थ रैंकिंग में सीकर जिले ने प्रथम स्थान, अजमेर ने द्वितीय एवं श्रीगंगानगर जिले ने तृतीय स्थान प्राप्त किया है। 
              • ‘राजधरा’ मोबाइल एप - चिकित्सा विभाग में आनलाईन निरीक्षण हेतु एक मोबाइल एप निर्मित किया गया है जिसे ‘राजधरा’ नाम दिया गया है। 

              वीर नारायण परमार के नाम पर हुआ राजकीय महाविद्यालय सिवाना

              राज्य सरकार ने 26 जून को आदेश जारी कर राजकीय महाविद्यालय सिवाना का नामकरण अब  ''वीर नारायण परमार राजकीय महाविद्यालय सिवाना'' कर दिया। 

              राजस्थान के श्री ओ पी यादव को 'लुम्बा इंटरनेशनल मीडिया अवार्ड'

              दूरदर्शन से जुड़े राजस्थान के श्री ओ पी यादव को नई दिल्ली में महिलाओं से जुडे सामाजिक सरोकारों को लेकर ''लुम्बा इंटरनेशनल मीडिया अवार्ड'' प्रदान किया गया। भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू के मुख्य आतिथ्य में आयोजित एक अतंर्राष्ट्रीय कार्यक्रम में केन्द्रीय विधि, न्याय एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री रविशकंर प्रसाद एवं लूम्बा फाउंडेशन की अध्यक्ष ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की पत्नी श्रीमती शैरी ब्लेयर और ब्रिटेन की पार्लियामेंट के सांसद एवं हाउस ऑफ लार्डस के सदस्य लॉर्ड राज लुम्बा ने सम्मानित किया। श्री यादव को यह पुरुस्कार दक्षिण एशिया में पार्लियामेंट प्रेस के जरिए सामाजिक सरोकारों को आगे बढ़ाने और समाज में हाशिये की जिन्दगी जी रही गरीब, विधवा और परित्यक्ता महिलाओं के अधिकारों के लिए जागरुकता लाने में सहयोग के लिए दिया गया है।

              मण्डफिया गांव का नाम होगा सांवलियाजी 

              चित्तौड़गढ़ जिले की भदेसर पंचायत समिति के मण्डफिया गांव का नाम बदलकर सांवलियाजी किया जाएगा। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे के निर्देश पर इसके लिए राजस्व विभाग द्वारा स्वीकृति पत्र जारी कर दिया गया है।
              मण्डफिया गांव का नाम बदलकर सांवलियाजी किए जाने से संबंधित स्वीकृति आदेश केन्द्रीय गृह मंत्रालय को अनुमोदन के लिए भिजवाया गया है, जहां से अनुमोदन प्राप्त होते ही मण्डफिया गांव का नाम राजस्व रिकॉर्ड में सांवलियाजी कर दिया जाएगा।

              4000 रुपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य पर सरसों खरीद हुई पूरी

              • सहकारिता मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार राजफैड द्वारा 24 जून, 2018 को सरसों खरीद पूरी कर ली गई है।
              •  राज्य के 1 लाख 70 हजार 825 किसानों से 4 लाख 71 हजार 614 मीट्रिक टन सरसों की खरीद 90 दिनों तक की गई। 
              • 27 मार्च 2018 से शुरू हुई 24 जून 2018 तक की गई।
              • इसके लिए 2 लाख 29 हजार 598 किसानों ने ऑनलाइन पंजीयन कराया था। राजफैड द्वारा 2 लाख 26 हजार 922 किसानों को तुलाई हेतु दिनांक आवंटित की गई। जिसमें से 1 लाख 70 हजार 825 किसानों ने निर्धारित 225 खरीद केन्द्रों पर आकर सरसों का बेचान किया। इसमें 1886.46 करोड़ रुपये की उपज खरीदी गई।
              • यह एक रिकॉर्ड है कि एक ही सीजन में इतनी बड़ी मात्रा में किसानों से सरसों खरीदी गई है।
              • राजफैड की प्रबंध निदेशक डॉ. वीना प्रधान के अनुसार सरसों खरीद के लिये केन्द्र सरकार ने 8 लाख मीट्रिक टन सरसों खरीद का लक्ष्य राज्य सरकार को दिया था। जिसमें से राजफैड द्वारा 4 लाख 71 हजार 614 मीट्रिक टन सरसों की खरीद की गई। 
              • किसानों से 4000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद की गई।
              • प्रदेश में पहली बार किसानों का ऑनलाइन पंजीयन कर सरसों की खरीद की गई है।
              • इस व्यवस्था से किसानों को अपनी उपज की तुलाई कराने एवं ऑनलाइन बैंक खाते में भुगतान ट्रांसफर करने से सहूलियत हुई है और इसी कारण से इतने अधिक किसानों से रिकार्ड 4 लाख 71 हजार मीट्रिक टन से अधिक की खरीद कर उन्हें लाभान्वित किया गया हैं।

               जयपुर में आयोजित हुआ सांख्यिकी दिवस का राज्य स्तरीय समारोह  -

              जयपुर के ओटीएस के भगवंत सिंह मेहता सभागार में 29 जून, 2018 को सांख्यिकी दिवस का राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया गया, जिसमें  राजस्थान वित्त आयोग की अध्यक्ष डॉ. ज्योति किरण ने कहा कि सांख्यिकी का देश के विकास में बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि किसी भी योजना को बनाने में आंकड़ों का महत्वपूर्ण योगदान होता और आंकड़े किसी भी व्यक्ति के जीवनक्रम को बदलने की क्षमता रखते हैं।
              डॉ. ज्योति किरण ने भारत के महान भारतीय वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद डॉ. पी.सी. महालनोबिस (प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस) की स्मृति में उनके जन्मदिवस 29 जून को मनाये जाने वाले सांख्यिकी दिवस के अवसर पर आयोजित राज्य स्तरीय समारोह के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि रियल टाइम डाटा की जरूरत 1980 के बाद महसूस हुई और आज रियल टाइम डाटा देश की योजनाओं के निर्माण में बहुत सहायक सिद्ध हो रहा है। 
              • कौन थे डॉ. पी.सी. महालनोबिस 
                • प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस (२९ जून १८९३- २८ जून १९७२) एक प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद थे। उन्हें दूसरी पंचवर्षीय योजना के अपने मसौदे के कारण जाना जाता है। 
                • वे भारत की स्वतत्रंता के पश्चात नवगठित मंत्रिमंडल के सांख्यिकी सलाहकार बने तथा उन्होंने औद्योगिक उत्पादन की तीव्र बढ़ोतरी के जरिए बेरोजगारी समाप्त करने के सरकार के प्रमुख उद्देश्य को पूरा करने के लिए योजना का खाका खींचा।
                • महालनोबिस दूरी- महालनोबिस की प्रसिद्धि महालनोबिस दूरी के कारण है जो उनके द्वारा सुझाई गई एक साख्यिकीय माप है।
                • उन्होने भारतीय सांख्यिकीय संस्थान की स्थापना की।
                • आर्थिक योजना और सांख्‍यि‍की विकास के क्षेत्र में प्रशांत चन्‍द्र महालनोबिस के उल्‍लेखनीय योगदान के सम्‍मान में भारत सरकार उनके जन्‍मदिन, 29 जून को हर वर्ष 'सांख्‍यि‍की दिवस' के रूप में मनाती है।
                • इस दिन को मनाने का उद्देश्‍य सामाजिक-आर्थिक नियोजन और नीति निर्धारण में प्रो॰ महालनोबिस की भूमिका के बारे में जनता में, विशेषकर युवा पीढ़ी में जागरूकता जगाना तथा उन्‍हें प्रेरित करना है।

              राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सेवा रत्न सम्मान एवं पत्रकार सम्मान -

              राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री जसबीर सिंह ने 28 जून को अल्पसंख्यक आयोग के सेवा रत्न पुरस्कार से समाज सेवा में संलग्न व्यक्तियों पूर्व आई ए एस, श्री ए.आर. खान, मोहमम्द अतीक एवं श्री अनवर हुसैन को सम्मानित किया गया । 
              इस अवसर पर प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया सहित सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले विशिष्ठ व्यक्तियों का सम्मान किया गया। संगीत एवं नाट्क अकादमी के अध्यक्ष श्री अशोक पाण्ड्या एवं पूर्व आई.पी.एस श्री पी.एन. रछोया सहित 19 मीडिया कर्मियों को पत्रकार सम्मान पत्र से सम्मानित किया गया।
              इनमें सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की सहायक जनसम्पर्क अधिकारी सुश्री सुमन मानतुवाल, फर्स्ट इण्डिया न्यूज के श्री तनवीर अहमद, दैनिक भास्कर की सुश्री लता खण्डेलवाल, राजस्थान पत्रिका के श्री शैलेन्द्र अग्रवाल, एवं श्री शादाब अहमद, जी न्यूज के श्री मोहम्मद दिलशाद खान, न्यूज 18 (ई.टी.वी. राजस्थान) के श्री अरबाज अहमद, एवं श्री बाबू लाल घायल, दूरदर्शन के सहायक निदेशक श्री प्रत्युष घोष, राष्ट्रदूत के श्री चैतन्य कुमार शर्मा, पंजाब केसरी के श्री इमरान खान, एकता पत्रिका के श्री फारूख अली, सीमा सन्देश के श्री नरेश पन्नू, समाचार जगत के श्री मुकेश पारीक, सिख जागृति के सरदार ओंकार सिंह, ब्यूरो प्रमुख उदय इण्डिया के डॉ॰ निर्मल जैन, दैनिक जलते दीप के श्री शैलेश शर्मा एवं रॉयल पत्रिका के श्री मुन्ना खान को पत्रकार सम्मान पत्र से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर स्टेट हज  कमेटी के अध्यक्ष श्री अमीन पठान, संगीत एवं नाट्क अकादमी के अध्यक्ष श्री अशोक पाण्ड्या आदि उपस्थित थे। 

              भारत को उसका 37वां विश्व यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मिला

              एक अन्य ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में, भारत के ‘मुंबई के विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको इंसेबल्स‘ को यूनेस्को की विश्व धरोहर संपदा की सूची में अंकित किया गया। (इंसेबल्स स्थापत्य कला-विशिष्ट इमारतों या संरचनाओं के समूह को कहते हैं।) यह निर्णय 30 जून 2018 को बहरीन के मनामा में यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 42वें सत्र में लिया गया। जैसी कि विश्व धरोहर समिति ने अनुशंसा की, भारत ने इंसेबल का नया नाम ‘मुंबई के विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको इंसेबल्स' स्वीकार कर लिया।

              भारत यूनेस्को के संचालन गत दिशानिर्देशों में निर्धारित मानदंड (2) एवं (4) के तहत ‘मुंबई के विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको इंसेबल‘ को विश्व धरोहर संपदा की सूची में अंकित करवाने में सफल रहा है।


              इससे मुंबई सिटी अहमदाबाद के बाद भारत में ऐसा दूसरा शहर बन गया है जो यूनेस्को की विश्व धरोहर संपदा की सूची में अंकित है।


              यह इंसेम्बल निम्नांकित दो वास्तुशिल्पीय शैलियों से निर्मित्त है-

              1. 19वीं सदी की 94 विक्टोरियन संरचनाओं (भवनों) का संग्रह -


              इन भवनों में पुराना सचिवालय (1857-74), विश्वविद्यालय पुस्तकालय और कन्वेंशन हॉल (1874-78), बोम्बे हाई कोर्ट (1878),सार्वजनिक निर्माण विभाग कार्यालय (1872), वाटसन होटल (1869), डेविड सेसून पुस्तकालय (1870), एलफिंस्टन कॉलेज (1888) आदि शामिल है।

              2. समुद्र तट के साथ 20वीं सदी के आर्ट डेको भवन।


              ओवल मैदान के पश्चिम में आर्ट डेको शैली की इमारतों को 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में मेरिन ड्राइव पर बनाया गया था और यह समकालीन आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए अभिव्यक्ति में बदलाव का प्रतीक था।

              इसके अतिरिक्त, देश के 42 स्थल विश्व धरोहर की प्रायोगिक सूची में हैं और संस्कृति मंत्रालय प्रत्येक वर्ष यूनेस्को को नामांकन के लिए एक संपत्ति की अनुशंसा करता है।

              केन्द्रीय पर्यटन मंत्री ने जोधपुर आतिथ्य प्रबंधन संस्थान का उद्घाटन किया-

              केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री के जे अल्फोंस ने 30 जून 2018 को जोधपुर में आतिथ्य प्रबंधन संस्थान (nstitute of Hospitality Management) का उद्घाटन किया।

            Rajasthan Current Affairs - जून 2018 Rajasthan Current Affairs - जून 2018 Reviewed by asdfasdf on July 01, 2018 Rating: 5
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